पाठ ४ – पहचान की समस्या

“तुम कौन हो ?” इल्ली ने कहा।

लेविस कार्रोल , ऐलिस इन वंडरलैंड

थॉमस नागेल की इसी सवाल पर श्रद्धा देते हुए निक कार्टर ने बहुत ही बेहतरीन लेख लिखा है जिसमे ये सवाल पर चर्चा की है की: बिटकॉइन होना कैसा महसूस होता है? वह शानदार तरीके से व्यक्त करता है की सार्वजनिक ब्लॉकचैन और खास कर बिटकॉइन को इस पहेली की उलझन होती है की कौनसा बिटकॉइन असली बिटकॉइन है?

विचार करो बिटकॉइन के घटको की कितनी कम दृढ़ता होती है। उसका पूरा कोड बदला गया है और कई बार अलग अलग तरीके से लिखा गया है की वह सबसे पहले लिखे गए कोड से मुश्किल से कुछ मेल खता है। कौन कितने बिटकॉइन का मालिक है यह पंजीकरण जिसे हम खाताबही कहते है (ledger) वही एक वास्तु है जो आज तक दृढ़ है। वास्तव में नेताविहीन होने के लिए हमे उस आसान पद्धति का समर्पण करना होगा जिसमे एक सत्ता निर्णय कर सकती है की कौनसी खाताबही वैध है।

निक कार्टर

ऎसे लगता है की प्रौद्योगिकी उन्नति हमे इन दार्शनिक प्रश्नो को गंभीरता से लेने पर मजबूर कर रही है। कभी न कभी स्वचालिक मोटरगाड़ी वास्तविक दुनिआ में ट्रॉली समस्या से सामना करेगी और उसे नैतिक निर्णय लेना होगा की किसका जीवन मायने रखता है और किसका नहीं।

क्रिप्टोकरेन्सीने खास कर सब से पहले विवादस्पद हार्ड फोर्क (hard-fork) के बाद, हमे मजबूर किआ सोचने और सहमत होने से की पहचान के तत्वमीमांसा क्या होती है। दिलचस्प बात यह है की दो सबसे बड़े उदाहरण जो हमारे सामने ए है वो दो अलग जवाब की ओर इशारा करते है। अगस्त १ , २०१७ को बिटकॉइन दो छावनीओ में बट गया। मार्केट ने तय किआ की जो कड़ी स्थिर थी वह बिटकॉइन की असली कड़ी थी। इस घटना के एक वर्ष पहले अक्टूबर २५ , २०१६ को एथेरेयम दो छावनिओ में बट गया। मार्केट ने तय किआ जो कड़ी बदली हुई थी वही असली एथेरेयम है।

अगर ठीक से विकेन्द्रीकृत किआ हो तो इस सवाल का जवाब तब तक देते रहना होगा जब तक मूल्य हस्तांतरण के नेटवर्क मौजूद रहेंगे।

बिटकॉइन ने मुझे सिखाया की विकेन्द्रीकरण और पहचान असंगत है।

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