पाठ २ – दुर्लभता की दुर्लभता

आम तौर पर, प्रौद्योगिकी प्रगति से सब कुछ प्रचुर मात्रा में मिलने लगता है। पहले जो सिर्फ एक भोग विलास की वास्तु मानी जाती थी आज वह वस्तु का कई आम लोग भी आनंद ले सकते है। बहुत ही जल्द हम सब राजाओ की तरह जी सकेंगे। हम में से कुछ तो आज राजाओ की तरह ही जी रहे है। जैसे पीटर दिअमेंडिस ने अपनी किताब abundance में लिखा है : “प्रौद्योगिकी एक संसाधन उपलब्ध करने की प्रक्रिया है। जो एक समय में अपर्याप्त था वो आज प्रचुर है।”

बिटकॉइन एक उन्नत प्रौद्योगिकी है जो ऊपर बताई बात को नकारता है और एक ऐसी वास्तु बनता है जो की सच में दुर्लभ है। कुछ तो यह भी मानते है की यह पुरे ब्रह्माण्ड में सबसे दुर्लभ वास्तु है। इसकी आपूर्ति को बढ़ाया नहीं जा सकता चाहे आप कितनी कोशिश कर लो बिटकॉइन की मात्रा बढ़ानेकी।

सिर्फ २ ही वस्तुए सच में दुर्लभ है : समय और बिटकॉइन।

सैफदीन अमुस

विरोधाभास से, यह अपनी दुर्लभता नक़ल करने की क्षमता से से लता है। लेनदेन (ट्रांसेक्शन) प्रसारित होते है, खंड (ब्लॉक) प्रचारित होते है, वितरित खाताबही (डिस्ट्रिब्यूटेड लेडजर) वितरित होती है। यह सब नक़ल के दूसरे नाम है। और तो और, बिटकॉइन खुद को हो सके उतने संगणको में अपनी नक़ल बनवाने के लिए लोगो को प्रोत्साहन देता है ताकि लोग अपने संगणक में फुल नोड चलाये और नए खंड बनाए।

यह सब प्रतिलिपि बहुत ही अद्भुत तरीके से मिल कर दुर्लभता पैदा करता है।

प्रचुरता क समय में बिटकॉइन ने मुझे सिखाया की असल दुर्लभता क्या होती है।

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